Tuesday, October 26, 2021

भारत दर्शन

ऐ भारत की धरा, 
विरासतों से भरा। 
धन्य हैं हम, 
है तुझे नमन। 


पंचतत्व का अमृत,
अंतरात्मा जागृत। 
ज्ञान का महासागर, 
अकूत है पड़ा। 

ऐ भारत की धरा, 
विरासतों से भरा। 
धन्य हैं हम, 
है तुझे नमन। 

वीर सपूतों का बलिदान, 
रखा भारत का मान। 
हमारी आन, बान और शान, 
महापुरुषों को हृदय से प्रणाम। 

 ऐ भारत की धरा, 
विरासतों से भरा। 
धन्य हैं हम, 
है तुझे नमन।

Friday, December 4, 2020

अलविदा!

मन दुखी, व्यथित भी

तू सामने खड़ा, ऐसा प्रतीत भी

 

चमकती आँखें, चौड़े ललाट,

शांत भाव, मिलनसार स्वभाव

 

दया करुणा से भरा तन मन,

प्यार समर्पण का अद्भुत दर्शन

 

अनमोल रहा तेरा साथ,

कुछ तो रही वो ख़ास बात

 

जीवन मरण है शाश्वत सत्य,

जीव के काल का अंतिम तथ्य

 

मन तन कर रहा क्रंदन

पवित्र आत्मा को नमन वंदन

 

यार तेरी यादें होंगी साथ,

आएंगे वो लम्हें हमेशा याद

 

मन दुखी, व्यथित भी,

तू सामने खड़ा, ऐसा प्रतीत भी


Sunday, March 22, 2009

सत्ता का मोह नहीं मुझे

सत्ता का मोह नहीं मुझे

न ही आसमां छूने की हसरत

किसी को गिराकर  आगे बढ़ूं

कहां है इतनी फुर्सत

अक्सर यही होता रहा है

आसमां छूने के चक्कर में

पैर जमीं पर नहीं होते

मैं जमीं पर रहना चाहता हूं

अपनों के बीच, अपनापन लिए

बस इतनी ही ख्वाहिश है

पथिक जो हूं, चलते जाना है

एक संदेश लेकर बढ़ते जाना है

बताना है उन सभी को

जो कर जाते हैं हद पार

सभी सीमाओं को जाते हैं लांघ

स्वार्थ के चरम पर, भूलकर अपनों को

पल भर में तोड़ देते हैं सपनों को

दंभ इतना कि दर्द नहीं दिखता

भले कोई मन से फूट-फूटकर रोता

आखिर ऐसा होता क्यों है

दंभ में कोई विवेक खोता क्यों है

क्या यही है सत्ता का मायावी खेल

जहां नहीं रह जाता मन का मेल

सोचकर भी चुभती ये बातें शूल सी

अनजाने में नहीं करना ये भूल भी

इसलिए प्रण लेकर फिर कहता हूं

सत्ता का मोह नहीं मुझे

और न ही आसमां छूने की हसरत

Thursday, March 19, 2009

जीवन चलने का नाम है


अगर जीवन चलने का नाम है

तो चल रहा हूं

कुछ करते रहना ही जीवन है

तो कर रहा हूं

रोता हूं, हंसता हूं

खोता हूं, पाता हूं

कभी इधर, कभी उधर

भटक भी जाता हूं

अगर इसी का नाम जीवन है

तो जी रहा हूं

नित नई चीजों से सामना

बोझ को पड़ता है थामना

रुकने का तो नाम ही नहीं

चाहे ठेस लग जाए सही

कुछ करने की चाह लिए

बिना किसी को कष्ट दिए

दर्द हो तो मुंह को सिए

बढ़ रहे मंजिल को कदम

रफ्तार धीमी ही सही

साथ में कोई माही भी नहीं

पर मन में एक विश्वास है

आज नहीं तो कल कोई खास है

इसलिए बढ़ा जा रहा हूं लगातार

क्योंकि जीवन तो चलने का नाम है

और यही मेरा काम है

Saturday, March 14, 2009

एक स्वप्न सहेजे मन में हूं


एक स्वप्न सहेजे मन में हूं

कुछ कर दिखाने को

दुनिया पर छा जाने को

जज्बात हिलोरे मार रहा

बढ़ने को, कुछ पाने को

अमिट छाप छोड़ जाने को

विश्वास है और दम भी

न समझा खुद को कम भी

आए-गए कितने गम भी

न थका, न रुका बस चलता रहा

एक-एक पायदान बढ़ता रहा

खुशियां मिली और गम भी

कई बार हुई आंखें नम भी

पर कभी नहीं रुके कदम

अब वहीं पहुंच कर लूंगा दम

भले ही मंजिल अभी दूर है

पर तय है, जाना जरूर है

एक स्वप्न सहेजे मन में हूं

कुछ कर दिखाने को


दुनिया पर छा जाने को

जज्बात हिलोरे मार रहा

बढ़ने को, कुछ पाने को

अमिट छाप छोड़ जाने को


Tuesday, December 2, 2008

वो क़यामत की रात थी


वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

आतंक का पसर रहा था साया

थोड़ी देर तक समझ नहीं आया

जब तक कुछ समझ में आया

तब तक हो चुकी थी देर

मुंबई में पड़े थे लाशों के ढेर

वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

सबने देखा आतंक का वीभत्स रूप

माहौल शून्य, थोड़ी देर के लिए चुप

न बनता था रोते और न कुछ करते

दांत भींच रहे थे, मन में अंगार था

क्या करूं, कुछ समझ नहीं आया

मैंने ख़ुद को बेबस पाया

वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

हमले के बाद था मातम का माहौल

देश की जनता का रहा था खून खौल

फ़िर खुल गई थी पड़ोसी की पोल

नेताओं को लगा यह सिर्फ़ आतंकी खेल

कहा खुफिया एजेन्सी हुई फ़िर फ़ेल

सुनते ही टूट गया सब्र का बाँध

नेता गए अक्षमता की सीमाओं को लाँघ

वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

फ़िर राजनीति का खेल शुरू हुआ

नैतिकता के नाम पर देने लगे इस्तीफे

किसी ने कहा अंतरात्मा की आवाज

तो किसी ने ऊपर से आया फ़ैसला बताया

इस प्रकार जनता में फ़िर भ्रमजाल फैलाया

आतंकवाद का मुद्दा दबता नजर आया

वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

प्रश्न कल भी वही था, आज भी वही है

जनता द्वारा पूछा हर सवाल भी सही है

पर न तो उत्तर मिला और न समाधान

Friday, November 28, 2008

समय जीत है तो हार भी है


समय एक भाटा है

तो ज्वार भी है

समय एक जीत है

तो हार भी है

इसमें गम भी है

तो प्यार भी है

इसमें हम खुश हैं

तो लाचार भी हैं

जो न महत्व को समझे

जीना दुश्वार भी है

और जिसने समझ लिया

उसकी नैय्या पार भी है

समय एक भाटा है

तो ज्वार भी है

समय एक जीत है

तो हार भी है