Sunday, March 22, 2009

सत्ता का मोह नहीं मुझे

सत्ता का मोह नहीं मुझे

न ही आसमां छूने की हसरत

किसी को गिराकर  आगे बढ़ूं

कहां है इतनी फुर्सत

अक्सर यही होता रहा है

आसमां छूने के चक्कर में

पैर जमीं पर नहीं होते

मैं जमीं पर रहना चाहता हूं

अपनों के बीच, अपनापन लिए

बस इतनी ही ख्वाहिश है

पथिक जो हूं, चलते जाना है

एक संदेश लेकर बढ़ते जाना है

बताना है उन सभी को

जो कर जाते हैं हद पार

सभी सीमाओं को जाते हैं लांघ

स्वार्थ के चरम पर, भूलकर अपनों को

पल भर में तोड़ देते हैं सपनों को

दंभ इतना कि दर्द नहीं दिखता

भले कोई मन से फूट-फूटकर रोता

आखिर ऐसा होता क्यों है

दंभ में कोई विवेक खोता क्यों है

क्या यही है सत्ता का मायावी खेल

जहां नहीं रह जाता मन का मेल

सोचकर भी चुभती ये बातें शूल सी

अनजाने में नहीं करना ये भूल भी

इसलिए प्रण लेकर फिर कहता हूं

सत्ता का मोह नहीं मुझे

और न ही आसमां छूने की हसरत

Thursday, March 19, 2009

जीवन चलने का नाम है


अगर जीवन चलने का नाम है

तो चल रहा हूं

कुछ करते रहना ही जीवन है

तो कर रहा हूं

रोता हूं, हंसता हूं

खोता हूं, पाता हूं

कभी इधर, कभी उधर

भटक भी जाता हूं

अगर इसी का नाम जीवन है

तो जी रहा हूं

नित नई चीजों से सामना

बोझ को पड़ता है थामना

रुकने का तो नाम ही नहीं

चाहे ठेस लग जाए सही

कुछ करने की चाह लिए

बिना किसी को कष्ट दिए

दर्द हो तो मुंह को सिए

बढ़ रहे मंजिल को कदम

रफ्तार धीमी ही सही

साथ में कोई माही भी नहीं

पर मन में एक विश्वास है

आज नहीं तो कल कोई खास है

इसलिए बढ़ा जा रहा हूं लगातार

क्योंकि जीवन तो चलने का नाम है

और यही मेरा काम है

Saturday, March 14, 2009

एक स्वप्न सहेजे मन में हूं


एक स्वप्न सहेजे मन में हूं

कुछ कर दिखाने को

दुनिया पर छा जाने को

जज्बात हिलोरे मार रहा

बढ़ने को, कुछ पाने को

अमिट छाप छोड़ जाने को

विश्वास है और दम भी

न समझा खुद को कम भी

आए-गए कितने गम भी

न थका, न रुका बस चलता रहा

एक-एक पायदान बढ़ता रहा

खुशियां मिली और गम भी

कई बार हुई आंखें नम भी

पर कभी नहीं रुके कदम

अब वहीं पहुंच कर लूंगा दम

भले ही मंजिल अभी दूर है

पर तय है, जाना जरूर है

एक स्वप्न सहेजे मन में हूं

कुछ कर दिखाने को


दुनिया पर छा जाने को

जज्बात हिलोरे मार रहा

बढ़ने को, कुछ पाने को

अमिट छाप छोड़ जाने को