Tuesday, December 2, 2008

वो क़यामत की रात थी


वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

आतंक का पसर रहा था साया

थोड़ी देर तक समझ नहीं आया

जब तक कुछ समझ में आया

तब तक हो चुकी थी देर

मुंबई में पड़े थे लाशों के ढेर

वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

सबने देखा आतंक का वीभत्स रूप

माहौल शून्य, थोड़ी देर के लिए चुप

न बनता था रोते और न कुछ करते

दांत भींच रहे थे, मन में अंगार था

क्या करूं, कुछ समझ नहीं आया

मैंने ख़ुद को बेबस पाया

वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

हमले के बाद था मातम का माहौल

देश की जनता का रहा था खून खौल

फ़िर खुल गई थी पड़ोसी की पोल

नेताओं को लगा यह सिर्फ़ आतंकी खेल

कहा खुफिया एजेन्सी हुई फ़िर फ़ेल

सुनते ही टूट गया सब्र का बाँध

नेता गए अक्षमता की सीमाओं को लाँघ

वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

फ़िर राजनीति का खेल शुरू हुआ

नैतिकता के नाम पर देने लगे इस्तीफे

किसी ने कहा अंतरात्मा की आवाज

तो किसी ने ऊपर से आया फ़ैसला बताया

इस प्रकार जनता में फ़िर भ्रमजाल फैलाया

आतंकवाद का मुद्दा दबता नजर आया

वो क़यामत की रात थी

पर किस्मत अपने साथ थी

देश आतंकियों से जूझ रहा था

और हम ख़बरों से

प्रश्न कल भी वही था, आज भी वही है

जनता द्वारा पूछा हर सवाल भी सही है

पर न तो उत्तर मिला और न समाधान