Friday, November 28, 2008

समय जीत है तो हार भी है


समय एक भाटा है

तो ज्वार भी है

समय एक जीत है

तो हार भी है

इसमें गम भी है

तो प्यार भी है

इसमें हम खुश हैं

तो लाचार भी हैं

जो न महत्व को समझे

जीना दुश्वार भी है

और जिसने समझ लिया

उसकी नैय्या पार भी है

समय एक भाटा है

तो ज्वार भी है

समय एक जीत है

तो हार भी है

ये कैसा जनतंत्र


भारत निर्माताओं का था ये मूल मंत्र

देश में हो ऐसा तंत्र, जो कहलाये जनतंत्र

पर अब बदल दी गयी है इसकी भाषा

नहीं रही जनतंत्र की वही परिभाषा

कहने को रह गया देश में लोकतंत्र

हाशिये पे है महात्माओं का मूल मंत्र

इस भूमि पर विकसित हो रहा ऐसा तंत्र
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Tuesday, November 25, 2008

जो देखा, सो लिखा

संघर्ष कर बहुत कुछ सीखा

आज दे रहा हूँ लेखा-जोखा

चोट लगी तो लगा तीखा

लक्ष्य के सामने यह फीका

आगे बढ़ा, राह बनती गयी

अचानक मंजिल सा कुछ दिखा

अनुभव कुछ खट्टा, कुछ मीठा

दिल पर हाथ रख कहता हूँ

मैंने जो देखा, सो लिखा

कई बार हारा, पर लगा रहा

कई बार गिरा, पर उठता रहा

एक विश्वास के साथ टिका रहा

रोया, हंसा भी, खोया, पाया भी

यह अनुभव कुछ खट्टा, कुछ मीठा

दिल पर हाथ रख कहता हूँ

मैंने जो देखा, सो लिखा

विफल रहा तो लगा अनाथ हूँ

सफल हुआ तो सारा जहाँ साथ है

और लगने लगा कि कुछ ख़ास हूँ

संघर्ष से अब तक अनूठा अहसास है

कई मायनों में यह बहुत ख़ास है

यह अनुभव कुछ खट्टा, कुछ मीठा

दिल पर हाथ रख कहता हूँ

मैंने जो देखा, सो लिखा

बहुत सोचा, बहुत समझा

बहुत सोचा बहुत समझा

फिसला भी, उलझा भी

पेंच के पंच को सहा भी

मन काफी व्यथित हुआ भी

पर उम्मीद का दामन थामे रहा

फिर बहुत सोचा, बहुत समझा

ख़ुद को पाया अकेला खड़ा भी

अंत में जमकर लड़ा भी

एक के बाद एक कई वार सहा भी

अचेत और निढाल पड़ा रहा भी

बार बार उठने की कोशिश की

उठा, गिरा और फिर उठा

फिर बहुत सोचा, बहुत समझा

बार बार मन ने मुझको कहा भी

उम्मीद का दामन मत छोड़ो

यहाँ आकर ख़ुद को मत तोड़ो

उठो, खड़े हो और फिर लड़ो