बहुत सोचा बहुत समझा
फिसला भी, उलझा भी
पेंच के पंच को सहा भी
मन काफी व्यथित हुआ भी
पर उम्मीद का दामन थामे रहा
फिर बहुत सोचा, बहुत समझा
ख़ुद को पाया अकेला खड़ा भी
अंत में जमकर लड़ा भी
एक के बाद एक कई वार सहा भी
अचेत और निढाल पड़ा रहा भी
बार बार उठने की कोशिश की
उठा, गिरा और फिर उठा
फिर बहुत सोचा, बहुत समझा
बार बार मन ने मुझको कहा भी
उम्मीद का दामन मत छोड़ो
यहाँ आकर ख़ुद को मत तोड़ो
उठो, खड़े हो और फिर लड़ो
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